आयुर्वेदः सेहत के खजाने की कुंजी हैं ये जड़ी बूटियां

 


आयुर्वेदः सेहत के खजाने की कुंजी हैं ये जड़ी बूटियां

आयुर्वेद को सेहत का खजाना कहा जाए तो गलत नहीं होगा. हर जड़ी-बूटी अपने भीतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई गुण समेटे हुए है. वैसे तो आयुर्वेद में लगभग 1,200 औषधीय जड़ी-बूटियों का वर्णन है. लेकिन यहां उन जड़ी बूटियों के बारे में बताया गया है जो आसानी से उपलब्ध हो सकें. इनमें से कई तो ऐसी हैं जिनके पौधे लोग घरों में बड़े शौक से लगाते है

हर जड़ी-बूटी अपने भीतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई गुण समेटे हुए है.

हर जड़ी-बूटी अपने भीतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई गुण समेटे हुए है.

 गिलोय (गुडूचि, अमृता)

गिलोय अथवा अमृता अपने नाम से ही अपने गुण को दर्शाती है. यह एक बेल है जिसके तने से रस निकालकर अथवा सत्व बनाकर प्रयोग किया जाता है. यह स्वाद में कड़वी लेकिन त्रिदोषनाशक होती है. इसका प्रयोग वातरक्त (गाउट), आमवात (आर्थराइटिस), त्वचा रोग, प्रमेह, हृदय रोग आदि रोगों में होता है. ये डेंगू हो जाने पर द्ब्रलड प्लेटलेट्स की घटी मात्रा को बहुत जल्दी सामान्य करती है. खून के अत्यधिक बह जाने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तो यह रामबाण है.

 अश्वगंधा (असगंध) 

अश्वगंधा आयुर्वेद में अत्यधिक प्रयुक्त होने वाली औषधि है इसकी जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर उपयोग में लाया जाता है. इसके चूर्ण के सत्व का सेवन तो और भी ज्यादा असरदायक है. अश्वगंधा चूर्ण बलकारी, शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने वाला, शुक्रवर्धक खोई हुई ऊर्जा को दोबारा देकर लंबी उम्र का वरदान देता है.

 शतावरी (शतावर) 

शतावरी की बेल की जड़ को सुखाकर चूर्ण के रूप में उपयोग किया जाता है. शतावरी भी रसायन औषधि है यह बौद्धिक विकास, पाचन को सुदृढ़ करने वाली, नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाली, उदर गत वायु दोष को ठीक करने वाली, शुक्र बढ़ाने वाली, नव प्रसूता माताओं में स्तन" को बढ़ाने वाली औषधि है. शतावरी का सेवन आपको आयुष्मान होने का आशीष देता है.

 आंवला (आमलकी)

आंवले के फल को लगभग सभी आयुर्वेद की संहिताओं में रसायन कहा गया है. चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भाव प्रकाश, अष्टांग हृदय सभी शास्त्र आंवले को प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला मानते हैं. इसके अलावा आंवले को त्वचारोगहर, ज्वरनाशक, रक्तपित्त हर, अतिसार, प्रवाहिका, हृदय रोग आदि में बेहद लाभकारी माना गया है. आंवले का नियमित सेवन लंबी आयु की गारंटी भी देता है.

 मुलहठी (यष्टिमधु )

मुलहठी के तने का प्रयोग अधिकतर किया जाता है. यह बलवर्धक, दृष्टिवर्धक, पौरुष शक्ति की वृद्धि करने वाली, वर्ण को आभायुक्त करने वाली, खांसी, स्वरभेद, व्रणरोपण तथा वातरक्त (गाउट) में अत्यंत उपयोगी होती है. इसका उपयोग पेप्टिक अल्सर के इलाज में किया जाता है. एसिडिटी के इलाज में तो यह बेहद कारगर है.

 ब्राह्मी 

ब्राह्मी देखने में तो सामान्य सी झाड़ी लगती है लेकिन ये बेहद असरकारी है. यह नर्वस सिस्टम के लिए अचूक औषधि है. बच्चों के लिए स्मृति और मेधावर्धक है. मिर्गी में इसका खासतौर पर प्रयोग होता है. मानसिक विकारों के इलाज के लिए तो यह रामबाण है. इसके अलावा इसका उपयोग ज्वर, त्वचा रोगों, प्लीहा संबंधी विकारों में भी होता है.

 अशोक 

अशोक की छाल बेहद गुणकारी होती है. यह स्त्री संबंधी रोगों में बेहद उपयोगी पाई गई है. यह विशेषतया श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, हृदय, दाहहर तथा अपच में उपयोगी है. वैसे इसके नाम में ही इसके गुण झलकते हैं. अशोक अर्थात अपने नाम को सिद्ध करने वाला, स्त्रियों के शोक तथा दुख  को दूर करने वाला है.

 हल्दी (हरिद्रा) 

यह भारत में सर्वाधिक मसालों में प्रयुक्त होने वाला प्रकंद है. त्वचा रोगों में, आर्थराइटिस, रक्तशोधक, आदि में इसका खूब प्रयोग होता है. विश्वभर में कई प्रकार के कैंसर के इलाज में भी इसके प्रभावजनक परिणाम सामने आए हैं.

 नीम (निम्ब )

नीम का पेड़ भारत में बेहद उपयोगी माना गया है. इसके सूखे पत्ते लोग कपड़े रखने वाली जगह पर कीटनाशक के रूप में रखते हैं. इसके अतिरिक्त किसी भी तरह के त्वचा रोग में इसके काढ़े और लेप का प्रयोग किया जाता है. स्नान के दौरान इसकी पत्तियों का प्रयोग बेहद लाभकारी होता है.

 मोरिंगा 

यह पेड़ पूरे भारत में बहुतायत से होता है तथा इसके पत्ते और फलियों का उपयोग किया जाता है. इसकी फलियों को तो सांभर में भी डाला जाता है. यह बलवर्धक होने के साथ ही जीर्ण ज्वर में बेहद उपयोगी है.

 तुलसी

यह औषधीय पौधा कई घरों में मिल जाएगा तथा सामान्य सर्दी-खांसी से लेकर ज्वर इत्यादि में भी उपयोग किया जाता है. इसकी हर्बल चाय तो विश्व प्रसिद्ध है. यह वातावरण को शुद्ध करती है तथा बैक्टिरियल इन्फेक्शन को झट से खत्म करने वाली होती है. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना इसका मौलिक गुण है.

 घृतकुमारी (गवारपाठा)

यह सर्वाधिक पाया जाने वाला छोटा-सा मांसल पत्तियों वाला पौधा है जो कि कई रोगों में अत्यंत उपयोगी है. इसके पत्तों के बीच का गूदा बाह्य उपयोग में त्वचा रोगों में काम आता है. स्त्रियों के मासिक धर्म की अनियमितता को खत्म करने में कारगर है, यकृत (लीवर), तिल्ली (स्पलीन) तथा पाचन संबंधी बीमारियों और आर्थराइटिस के इलाज में इसका खूब प्रयोग होता है.

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