बवासीर के लक्षण, कारण, चिकित्सा और आयुर्वेदिक उपचार

 अयोध्या : बवासीर आजकल एक आम बीमारी के रूप में प्रचलित है। इस रोग मे गुदे की खून की नसें (शिराएं) फ़ूलकर शोथयुक्त हो जाती हैं,जिससे दर्द,जलन,और कभी कभी रक्तस्राव भी होता है।बवासीर का प्रधान कारण कब्ज का होना है।जिगर मे रक्त संकुलता भी इस रोग कारण होती है। मोटापा, व्यायाम नहीं करना और भोजन में रेशे(फ़ाईबर) की कमी से भी इस रोग की उत्पत्ति होती है।

यह एक अत्यंत कष्टप्रद रोग है। ‘अरिवत् प्राणान् श्रृणति हिनस्ति’, जो शत्रु के समान प्राणों को कष्ट में डाले उसे अर्श कहते हैं। इस विग्रह में हिं सार्थक शृ धातु से अर्श शब्द की सिद्धि होती है। जिन्दगी को दूभर करने वाले इस रोग से ग्रसित व्यक्ति के कष्ट का वर्णन करना कठिन कार्य है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञानी स्थान संश्रय की दृष्टि से इसे वाह्य (EXTERNAL) और आभ्यन्तर (INTERNAL) दो ही प्रकार का मानते हैं। किन्तु आयुर्वेद के प्राचीन आचार्य निदान, सम्प्राप्ति, लक्षण एवं चिकित्सा की भिन्नता के कारण इसे छः प्रकार का मानते हैं। कुछ व्यक्तियों में जन्म से ही अर्श की प्रवृत्ति पाई जाती है। इसका कारण गुदावली का निर्माण करने वाले गर्भोत्पादक बीज के एक देश (क्षेत्र) की विकृति को कहा जा सकता है।

मल द्वार के अन्दर तीन वलि (आवर्त) होते हैं। इनकी शिरायें जो श्लेष्मकला के भीतर रहती हैं प्रक्षुभित हो जाने से यह रोग होता है। गुदा की तीन वलियों में अर्श की स्थिति मानी गई है। वृहदान्त्र (LARGE INTESTINE) के अंतिम भाग को गुद (RECTUM) कहते हैं। इसकी लम्बाई साढ़े चार अंगुल होती है। इसमें ऊपर से नीचे की ओर क्रमशः प्रवाहणी डेढ़ अंगुल, संवरणी एक अंगुल ये तीन वलियां होती हैं। पतली शिराओं (VEINS) का एक जाल मलाशय को भीतर चारों ओर से घेरे रहता है। इन शिराओं में रक्त का संचय होकर फूलने से यह मस्से का रूप ले लेता है। मलाशय के दीवार की सिरायें लम्बाई में फैली रहती हैं। कब्ज से पीड़ित व्यक्ति शौच जाते वक्त शीघ्रता के लिये जब नीचे की ओर अधिक जोर लगाते हैं, तो इन शिराओं में खून उतर आता है। बार-बार यह प्रक्रिया जारी रहने पर उतरा हुआ रक्त वापस नहीं जा पाता। इस प्रकार दूषित रक्त के संचय होने से मांसांकुर या मस्से उत्पन्न हो जाते हैं। मलद्वार की तीनों वलियों में ये मस्से हो सकते हैं। अंतिम वलि संवरणी में होने वाले मस्से बाहर की ओर दो-तीन संख्याओं में या गुच्छे के रूप में बाहर निकल आते हैं, जो कि शौच जाते समय अत्यन्त कष्ट प्रदान करते हैं।

बवासीर के लक्षण

बवासीर के मस्सों के प्रक्षुभित (IRRITATE) हो जाने पर शौच के वक्त अत्यंत कष्ट होता है। यहां तक कि बैठने में भी दर्द होता है। कभी-कभी तो शौच के समय 100 से 200 ग्राम तक रक्त निकल आता है। अधिक चलने से मस्सों में रगड़ होने से रक्त स्त्राव होने लगता है। रोग की तीव्र अवस्था में किसी भी समय किसी भी अवस्था में रक्त स्त्राव हो सकता है। मस्सों में सूजन एवं जलन लगातार होती रहती है। वादी बवासीर में रक्त नहीं निकलता पर सूजन के कारण शौच के समय तथा अपान वायु निकलने में चलने-फिरने और बैठने में बहुत कष्ट होता है। 

बवासीर के कारण

अनियमित रहन-सहन, कड़वा-कषैला, नमकीन खाना, चाय, काफी, मिर्च-मसाले युक्त बासी एवं गरिष्ठ भोजन, मद्यपान, अजीर्ण तथा कब्ज बने रहना, शौच के समय खूब जोर लगाना, काफी देर तक एक स्थान पर बैठे रहने का कार्य करना, दिन में सोना, वात-पित्त एवं कफ का कुपित होना आदि बवासीर के प्रमुख कारण हैं। महर्षि चरक ने गर्भपात, गर्भावस्था तथा विषम प्रसूती को भी बवासीर का कारण माना है क्योंकि इसमें भी गुदा की सिराओं पर दबाव पड़ता है। अधिक ठण्डे स्थान पर देर तक बैठे रहने से भी गुदा की सिराओं के संकुचित हो जाने से अर्श उत्पन्न हो जाता है। अत्यधिक शराब पीने से पित्त विकृत होकर अर्श की उत्पत्ति करता है।

बवासीर की साध्यता एवं असाध्यता

जो बवासीर अंतिम बाहरी वली (आवर्त) में होता है और एक वर्ष से अधिक समय का नहीं होता उसकी चिकित्सा साध्य होती है। दूसरे आवर्त में उत्पन्न मांसांकुर (अर्श) कष्ट साध्य होता है। जो बवासीर बहुत समय का हो, वात-पित्त एवं कफ तीनों दोषों के प्रकुपित होने से हो, एवं गुदा की भीतर की पहली प्रवाहणी वली में हो, वह प्रायः असाध्य होता है। अर्श की उचित चिकित्सा नहीं करने से निरंतर अहितकर आहार-विहार करते रहने से मलाशय में (RECTUM) शोथ (inflammation) हो जाता है तथा फोड़ा, भगन्दर आदि महाकष्टकारी असाध्य रोग हो जाते हैं। अतः इसकी प्रारम्भ में ही उपेक्षा नहीं करनी चाहिये।

बवासीर की चिकित्सा

इसकी चिकित्सा में विशेषकर यह ध्यान देना चाहिये कि रोगी को किसी भी प्रकार से कब्ज (CONSTIPATION) न हो। कब्ज दूर करने के लिये निम्न योगों का सेवन करना चाहिये।

(1) प्रातः सूखे आंवले का चूर्ण 2 ग्राम।
(2) दो प्रहर को ईसबगोल की भूसी 10 ग्राम की मात्रा में नींबू पानी के साथ।
(3) रात को सोते समय 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण दूध के साथ लें। इसके अलावा 2 हरड़ भी पानी के साथ ले सकते हैं।

आयुर्वेदिक योग

(1) भोजन के बाद 2 चम्मच अभयारिष्ट समान जल से लें।
(2) काले तिल का चूर्ण व शुद्ध भिलावे का चूर्ण समान मात्रा में लेकर जल के साथ 2-3 बार पियें।
(3) बेल का मुरब्बा या कच्चे बेल को भून कर खायें।
(4) कोष्ठ शुद्धि के लिये एरण्ड का तेल ;(castor oil) पीना चाहिये। दर्द तथा जलन के स्थान पर भांग अथवा अफीम बांधनी चाहिये।
(5) करेले के रस में मिश्री मिलाकर पीने से बवासीर में लाभ होता है।
(6) चन्द्रप्रभा वटी सुबह-शाम एक-एक वटी दूध के साथ लें।
(7) कुमारी आसव दो चम्मच तथा दशमूलारिष्ट दो चम्मच मिलाकर समान जल से भोजन के बाद दिन में दो बार लें।

क्षार सूत्र चिकित्सा

इस क्रिया में क्षार सूत्र द्वारा मस्सों को बांध देते हैं। सूत्र में लगे क्षार अपने औषधीय गुणों से मस्सों को काट देते हैं। मस्सों में अपामार्ग क्षार, उदुम्बाक्षार, óहीक्षार नियमित रूप से लगाने पर मस्से सूख कर बाहर आ जाते हैं। बड़े मस्सों के लिये क्षार सूत्र का प्रयोग करते हैं। मजबूत धागे पर हल्दी, क्षार एवं सूरई के दूध की क्रमशः 21 परतें चढ़ाकर सुखाने के बाद क्षार सूत्र तैयार होता है। क्षार सूत्र से मस्से को कसकर बांध दें जिससे बंधे स्थान पर मस्सा कट जाता है एवं घाव भी स्वतः ठीक हो जाता है। प्रत्येक सप्ताह क्षार सूत्र बदल दिया जाता है। क्षार सूत्र लगवाने के घन्टे दो घन्टे बाद सामान्य रूप से कार्य किया जा सकता है। इस समय अर्शोघ्नी वटी, शोभांजन वटी लें तथा मस्सों पर जात्यादि तैल लगाना चाहिये। हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, अल्सर और राजयक्ष्मा (T.B) के रोगी को क्षार सूत्र नहीं लगाना चाहिये। सर्वप्रथम इन रोगों की चिकित्सा करनी चाहिये। आधुनिक युग में कब्ज के लिये विरेचक (PURGATIVE) औषधियों को देते हैं। शौच में कष्ट दूर करने के लिए कुछ मल्हम आदि का प्रयोग करते हैं। अगर रोग तीव्र हो तो मस्सों का OPERATION कर देने पर आरोग्य प्राप्त हो जाता है। पथ्य-परहेज भी पर्याप्त मात्रा में अपेक्षित है। एक बार (OPERATION) करने के बाद भी अगर रहन-सहन व खान-पान ठीक नहीं रखा गया तो इस कष्टकारी रोग से पुनः ग्रस्त होने की संभावना रहती है।

पथ्यः– तोरई, लौकी, मूली, खीरा, पपीता (कच्चा एवं पका), भिन्डी, पुराना चावल, मूंग की दाल, बथुआ, करेला, टमाटर, मिश्री, किशमिश, इलायची, मट्ठा, गोमूत्र, चोकरयुक्त आटे की रोटी अर्श रोग में हितकर होती है।

अपथ्यः– खट्टा, मिर्च, मसाला, बासी एवं गरिष्ठ भोजन, उड़द, तले-भुने पदार्थ, बैंगन, अरबी, आलू, मल-मूत्र एवं अपान वायु को रोकना, दिन में सोना, अत्यधिक चलना-फिरना तथा कठोर परिश्रम करना वर्जित है।

बवासीर दो प्रकार की होती है-

1. खूनी बवासीर :- अंदर की बवासीर से खून निकलता है इसलिए इसे खूनी बवासीर कहते हैं।

2. बादी-बवासीर :- बाहर की बवासीर में दर्द तो होता है लेकिन उनसे खून नहीं निकलता है इसलिए इसे बादी-बवासीर कहते हैं।

बवासीर रोग होने के कारण :

मलत्याग करते समय में अधिक जोर लगाकर मलत्याग करना।

बार-बार जुलाव का सेवन करना।

बार-बार दस्त लाने वाली दवाईयों का सेवन करना।

उत्तेजक पदार्थों का अधिक सेवन करना।

अधिक मिर्च-मसालेदार भोजन का सेवन करना।

अधिक कब्ज की समस्या होना।

वंशानुगत रोग या यकृत रोग होना।

शारीरिक कार्य बिल्कुल न करना।

शराब का अधिक मात्रा में सेवन करना।

पेचिश रोग कई बार होना।

निम्नस्तरीय चिकनाई रहित खुराक लेना।

घुड़सवारी करना।

गर्भावस्था के समय में अधिक कष्ट होना तथा इस समय में कमर पर अधिक कपड़ें का दबाव रखना।

रात के समय में अधिक जागना।

मूत्र त्याग करने के लिए अधिक जोर लगना। मस्से के लिये कई घरेलू ईलाज हैं,लेकिन सबसे महत्वपूर्ण और आधार भूत बात यह है कि रोगी को २४ घंटे में 4-5 लीटर लिटर पानी पीने की आदत डालनी चाहिये। ज्यादा पानी पीने से शरीर से विजातीय पदार्थ बाहर निकलते रहेंगे और रोगी को कब्ज नहीं रहेगी जो इस रोग का मूल कारण है।

हरी पत्तेदार सब्जियां,फ़ल और ज्यादा रेशे वाले पदार्थों का सेवन करना जरुरी है।

बवासीर रोग में घरेलू उपचार-

१.) कलमी शोरा और रसोंत बराबर मात्रा में लेकर मूली के रस में पीस लें,यह पेस्ट बवासिर के मस्सो पर लगाने से तुरंत राहत मिलती है।

२) जमींकंद को भोभर मे भून लें और दही के साथ खाएं।

3) कमल का हरा पता पीसकर उसमे, मिश्री मिलाकर खाने से बवासीर का खून बंद हो जाता है|

४) नाग केशर ,मिश्री और ताजा मक्खन सम भाग मिलाकर खाने से बवासीर रोग नियंत्रण में आ जाता है|

५) गुड़ के साथ हरड खाने से बवासीर में लाभ मिलता है|

६) बवासीर में छाछ अमृत तुल्य है| छाछ में सैंधा नमक मिलाकर लेना उचित है|

मूली के नियमित सेवन से बवासीर ठीक होने के प्रमाण मिले हैं|

८) गेंदे के हरे पत्ते १० ग्राम,काली मिर्च के ५ दाने मिश्री १० ग्राम सबको ५० मिली पानी में पीस कर मिला दें | ऐसा मिश्रण चार दिन तक लेते रहने से खूनी बवासीर खत्म हो जाती है|

९ ) बिदारीकंद और पीपल समान भाग लेकर चूर्ण बनालें। ३ ग्राम चूर्ण बकरी के दूध के साथ पियें।

१०) .कडवी तोरई की जड को पीसकर यह पेस्ट मस्से पर लगाने से लाभ होता है।

११ ) करंज,हरसिंगार.बबूल,जामुन,बकायन,ईमली इन छ: की बीजों की गिरी और काली मिर्च इन सभी चीजों को बराबर मात्रा में लेकर कूट पीसकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनालें। २ गोली दिन में दो बार छाछ के साथ लेने से बवासिर में अचूक लाभ होता है।

१२ ) आक के पत्ते और तम्बाखू के पत्ते गीले कपडे मे लपेटकर गरम राख में रखकर सेक लें। फ़िर इन पत्तों को निचोडने से जो रस निकले उसे मस्सों पर लगाने से मस्से समाप्त होते हैं।

१३ ) कनेर के पत्ते,नीम के पत्ते ,सहजन के पत्ते और आक के पत्ते

पीसकर मस्सों पर लगावें जरूर फ़ायदा होगा।

१४ ) चिरायता,सोंठ,दारूहल्दी,नागकेशर,लाल चन्दन,खिरेंटी इन सबको समान मात्रा मे लेकर चूर्ण बनालें। ५ ग्राम चूर्ण दही के साथ लेने से पाईल्स ठीक होंगे।

१५) एलोवेरा( ग्वार पाठा) का गूदा मस्सों पर लगाने से सूजन दूर होती है।

१६ ) विटामिन सी (एस्कोर्बिक एसीड) खून की नलिकाओं को स्वस्थ बनाती है। ५०० एम जी की २ गोली रोज लेना उपकारी है।

१७) पके केले को बीच से चीरकर दो टुकडे कर लें और उसपर कत्था पीसकर छिडक दें,इसके बाद उस केले को खुली जगह पर शाम को रख दें,सुबह शौच से निवृत्त होने के बाद उस केले को खालें, केवल १५ दिन तक यह उपचार करने से भयंकर से भयंकर बवासीर समाप्त हो जाती है।

१बवासीर रोग की सरल ८ ) हारसिंगार के फ़ूल तीन ग्राम काली मिर्च एक ग्राम और पीपल एक ग्राम सभी को पीसकर उसका चूर्ण तीस ग्राम शकर की चासनी में मिला लें,रात को सोते समय पांच छ: दिन तक इसे खायें। इस उपचार से खूनी बवासीर

में आशातीत लाभ होता है। कब्ज करने वाले भोजन पदार्थ वर्जित हैं।

१९) दही और मट्ठे के नियमित उपयोग से बवासीर में हितकारी प्रभाव होता है।

२०) प्याज के छोटे छोटे टुकडे करने के बाद सुखालें,सूखे टुकडे दस ग्राम घी में तलें,बाद में एक ग्राम तिल और बीस ग्राम मिश्री मिलाकर रोजाना खाने से बवासीर का नाश होता है|

२१) एक नीबू लेकर उसे काट लें,और दोनो फ़ांकों पर पांच ग्राम कत्था पीस कर छिडक दें, खुली जगह पर रात भर रहने दें,सुबह बासी मुंह दोनो फ़ांकों को चूस लें,कैसी भी खूनी बबासीर दो या तीन हफ़्तों में ठीक हो जायेगी।

२२) आम की गुठली का चूर्ण शहद या पानी के साथ एक चम्मच की मात्रा में लेते रहने से खूनी बवासीर ठीक होती है।

२३) सूखे आंवले का चूर्ण रात को सोते वक्त मामूली गरम जल से लें । अर्श में लाभ होगा।

२४) अब मैं यहां खूनी बवासीर का एक उपचार प्रस्तुत कर रहा हूं जो आश्चर्य जनक रूप से लाभकारी है और एक ही रोज में खून गिरना बंद कर देता है। नारियल की जटा को जलाकर भस्म(राख) करलें और एक शीशी में भरलें। करना ये है कि ३ ग्राम भस्म एक गिलास मट्ठे या दही के साथ उपयोग करें। उपचार खाली पेट लेना है। ऐसी खुराक दिन मे तीन बार लेना है। बस एक दिन में ही खूनी बवासीर ठीक करने का यह अनोखा उपचार है।

२५) बवासीर रोग की कारगर हर्बल चिकित्सा के लिये वैध्य दामोदर से 098267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं।सैंकडों रोगी लाभान्वित हुए हैं|

२६) मैं होमियोपैथी की मदरटिंचर हेमेमिलिस और बायोकाम्बिनेशन नम्बर सत्रह से बवासीर के अनेक केस ठीक कर चुका हूँ। पाँच-पाँच बूंद हेमेमिलिस आधा कप पानी में मिला कर दिन में तीन बार और बायोकाम्बिनेशन सत्रह की चार-चार गोलियाँ तीन बार लेने से खूनी और साधारण बवासीर ठीक हो जाती है।

२७) मंत्र-चिकित्सा सिस्टम में बवासीर और भगंदर का रामबाण ईलाज मंत्र के माध्यम से करने का निर्देश है:- रोज रात को पानी रखकर सोवे तथा सुबह उठकर इस मन्त्र से 21 बार अभिमंत्रित करे तथा अभिमंत्रित जल से गुदा को धोना है।ऊंगली गुदा में प्रविष्ट कर मालिश भी करना है। ७ दिवस में फ़र्क नजर आने लगेगा और एक माह में रोग से पूर्णत: मुक्ति मिल जाती है। मंत्र इस प्रकार है–


विशिष्ट परामर्श-

खूनी और बाड़ी बवासीर मे जड़ी बूटी की हर्बल मेडिसीन सर्वाधिक  सफल साबित होती है| पुराना अर्श रोग भी ठीक हो जाता है| आपरेशन से बचाने वाली औषधि है|| हर्बल मेडिसीन के लिए वैध्य दामोदर जी से 9826795656 पर संपर्क कर सकते हैं|



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