कटहल के गुण :कटहल के फ़ल में कई प्रकार के महत्वपूर्ण प्रोटीन्स,कार्बोहाईड्रेट्स और विटामिन्स पाये जाते हैं। सब्जी के तौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले कटहल से अचार और पापड भी बनाये जाते हैं। कटहल की पत्तियों की राख में अल्सर को ठीक करने के गुण होते हैं। पके हुए कटहल का गूदा निकालकर भली प्रकार मेश करें,फ़िर उबालकर ठंडा करें,यह मिश्रण पीना जबर्दस्त स्फ़ूर्तिदायक होता है। यह मिश्रण शरीर में टानिक का काम करता है। कटहल के छिलकों से निकलने वाले दूध को गांठनुमा सूजन अथवा कटे-फ़टे चमडे ,घाव पर लगावें तो लाभ होता है।
कटहल की कोंपलों को कूटकर गोली बनालें। इनको चूसने से स्वर भंग और गले के रोगों में फ़ायदा होता है।
इसकी पत्तियों का रस और उच्च रक्तचाप में लाभ पहुंचाता है।कटहल की जड का काढा बनाकर दमा रोगी को पिलाना लाभप्रद होता है। इसमें केंसर से लडने के गुण भी हैं। कटहल से मानव शरीर में प्रोटीन,कर्बोहायड्रेट और विटामिन्स की यथोचित आपूर्ति होती है।<इसमें अति न्यून मात्रा में केलोरी और फ़ेट होते है अत: वजन कम करने वालों के लिये भी उपयोगी है। कब्ज रोग से परेशान व्यक्ति इसका नियमित इस्तेमाल करके कब्ज से छुटकारा पा सकते हैं।कटहल की जड का उपयोग कई प्रकार के चर्म रोगों में सफ़लता से किया जा सकता है।
गाजर के गुण: गाजर मे प्रचुर मात्रा में विटामिन ए होता है। यह विटामिन बीटा केरोटीन के रूप में मौजूद रहता है।लिवर में बीटा केरोटीन विटामिन ए में बदल जाता है।गाजर के रस में केंसर विरोधी तत्व पाये जाते हैं। अनुसंधान में पाया गया है कि गाजर में केंसर को ठीक करने के गुण विद्ध्यमान हैं। यह फ़ेफ़डे,स्तन और बडी आंत के केंसर से बचाव करता है।चर्म विकृतियों में भी गाजर का उपयोग लाभप्रद रहता है। चेहरे पर कांति के लिये गाजर का उपयोग किया जाना चाहिये।गाजर हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। इसे टोनिक के रूप में व्यवहार करना चाहिये। यह नेत्रों के लिये बेहद फ़ायदेमंद है।बुढापे में आने वाले मोतियाबिंद की रोकथाम करता है। गाजर हमारे शरीर के सेल्स को तंदुरस्त रखते हुए बुढापा आने की गति को धीमा करता है।शरीर की खरोंच,घाव ठीक करने के लिये गाजर को कूटकर लगाना चाहिये। गाजर को मेश करके उसमे थोडा सा शहद मिलाकर फ़ेस पेक की तरह इस्तेमाल करने से चेहरे की खूबसूरती में इजाफ़ा होता है।इसमें संक्रमण (इन्फ़ेक्शन। विरोधी तत्व होते हैं।गाजर में अल्फा केरोटीन और ल्युटीन तत्व होने की वजह से हृदय रोगों से भी बचाव करता है।शरीर को स्वच्छ और विजातीय पदार्थों से मुक्त रखने में गाजर की महती भूमिका हो सकती है।यह लिवर की सहायता करके पित्त दोष का निवारण करता है और चर्बी घटाता है।
सेवफ़ल के गुण:सेवफ़ल में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते हैं।सेवफ़ल में उपस्थित लोह तत्व से शरीर में नया खून बनने में मदद मिलती है।गुर्दे की पथरी वाले रोगियों को नियमित रूप से सेवफ़ल इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।सेवफ़ल में कब्ज तोडने की अद्भुत शक्ति है। कच्चे सेवफ़ल के नियमित उपयोग से कब्ज का स्थाई ईलाज हो जाता है। हृदय-रोगों में सेवफ़ल अति गुणकारी सिद्ध हुआ है। उच्च रक्तचाप में इसका उपयोग लाभदायक है।इसमें अच्छी मात्रा में पोटेशियम और फ़ास्फ़ोरस पाया जाता और सोडियम नही के बराबर होता है। यही कारण है कि सेवफ़ल हृदय रोगों में इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। इसमे पेक्टीन होता है जो कोलेस्टरोल(एल्डीएल) को घटाता है। दो सेवफ़ल नित्य खाने से >कोलेस्टरोल १६ % तक कम हो जाता है।सेवफ़ल में उपस्थित पेक्टीन शरीर मे गेलेक्टेरुनिक एसीड उत्पन्न करता है जिससे इन्सुलिन की जरूरत कम हो जाती है।इस प्रकार सेवफ़ल डायबीटीज में हितकारी है।इसीलिये तो कहते हैं”an apple a day keeps doctor away.
चुकंदर के गुण:पारंपरिक रूप से चुकंदर शरीर में नया खून बनाने वाले फ़ल के रूप में जाना जाता है।
चुकंदर लिवर,पित्ताषय,तिल्ली, और गुर्दे के विकारों को लाभप्रद पाया गया है। इन अंगों के दूषित तत्वों को बाहर निकालने की शक्ति चुकंदर में पाई गई है।
चुकंदर में विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।केल्शियम,फ़ास्फ़ोरस और लोह तत्व भी खूब होता है।इसमें पाये जाने वाले आयरन से कब्ज नहीं होती है।
चुकंदर अपने क्षारीय तत्वों की वजह से अम्लपित्त(एसीडीटी) में उपयोगी रहता है।
चुकंदर धमनियों में केल्शियम जमने के रोग में अति उपयोगी है।
चुकंदर ब्लड प्रेशर को सामान्य और नियमित करता है।
चुकंदर के जूस में शहद मिलाकर पीने से आमाषय के अल्सर में लाभ मिलता है।
चुकंदर का जूस और गाजर का जूस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से पित्ताषय(गाल ब्लाडर) और किडनी के रोग नष्ट होते हैं। चुकंदर में पाया जाने वाला क्लोरिन लिवर के विजातिय पदार्थों को निष्कासित करने(डिटाक्सीफ़ाई) में मददगार होता है।
चुकंदर : सोडियम,पोटेशियम,फ़ासफ़ोरस,केल्यशियम,आयोडीन,आयरन,ताम्र,विटामिन-बी१,बी२,बी३,बी६ और विटामिन “सी” पाया जाता है। इसमें एक शक्तिशाली एन्टिआक्सीडेंट पाया जाता है जिसका नाम है- बीटासायनिन. इसमें केंसर से लडने और प्रतिकार की शक्ति है। चुकंदर के गहरे लाल रंग के लिये बीटासायनिन उत्तरदायी है।
केला के गुण:केला दुनियं भर में सबसे विस्तृत क्षेत्र में उपयोग होने वाला फ़ल है। इसे छिलका उतारकर या छिलका सहित खाया जा सकता है। इसमें सोडियम की मात्रा कम और पोटेशियम ज्यादा होने से उच्च रक्तचाप में लाभप्रद फ़ल है। हाई ब्लड प्रेशर की जटिलताओं को भी नियंत्रित करता है। केले में पाया जाने वाला रेशा भी इसमें सहायता करता है। केले में उपस्थित पोटेशियम के प्रभाव से गुर्दों के जरिये केल्शियम की कम हानि होती है और इस प्रकार केला अस्थिक्षरण रोग में लाभ देता है। अतिसार रोग मे केला अत्यंत हितकारी है। इससे ईलेक्ट्रोलाईट्स की पूर्ति होती है और पौषक तत्वों का शरीर में संचय होता है। केले में अम्लता विरोधी तत्वों की मौजूदगी से पेप्टिक अल्सर के रोगियों को केला खाने की सलाह दी जा सकती है।केले में उपस्थित पेक्टीन से आंतों की कार्यकुशलता बढती है और कब्ज रोग में फ़ायदा होता है। कच्चा केला शूगर रोगियों के लिये बेहद लाभ प्रद है। केले के अंदर केरोटोनाईड होता है,इससे विटामिन ए की पूर्ति होती है और रात्री अंधत्व रोग में इस्तेमाल करना प्रयोजनीय है। पर्यात मात्रा में केले का सेवन करते रहने से किडनी के केंसर से बचाव हो सकता है लेकिन प्रोसेस्ड जूस ज्यादा उपयोग करने से किडनी के केंसर की संभावना बढ जाती है।
पाईनेपल(अनानास) के गुण: वैसे तो सभी ताजा फ़लों में प्रचुर मात्रा में एन्जाईम्स होते हैं लेकिन पाईनेपल में एक अद्भुत एन्जाईम होता है जिसे ब्रोमेलैन कहा जाता है।ब्रोमेलैन की उपस्थिति से यह फ़ल शरीर के किसी भाग में आई सूजन में लाभकारी है और पीडानाशक भी है। इसमें विटामिन सी का भंडार है। पाईनेपल चोंट,खरोंच,मोच,मांसपेशी खिंचने,शौथ में हितकारी फ़ल माना गया है।इसके सूजन विरोधी गुण से संधिवात और गठिया रोगी लाभान्वित हो सकते हैं। शल्य क्रिया के बाद की सूजन ठीक करने में भी इसका व्यवहार होना उचित है। ब्रोमैलेन प्रोटीन पचाने में भी सहयोगी रहता है।यहां यह भी बताना उचित होगा कि एन्जाईम्स ताप से नष्ट हो जाते हैं ,इसलिये पाईनेपल या जूस को ऊबालना हानिकारक है|
जामुन के गुण:
1) जामुन की गुठली चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी मानी गई है। इसकी गुठली के अंदर की गिरी में ‘जंबोलीन’ नामक ग्लूकोसाइट पाया जाता है। यह स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित होने से रोकता है। इसी से मधुमेह के नियंत्रण में सहायता मिलती है।
२) जामुन के कच्चे फलों का सिरका बनाकर पीने से पेट के रोग ठीक होते हैं। अगर भूख कम लगती हो और कब्ज की शिकायत रहती हो तो इस सिरके को ताजे पानी के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह और रात्रि, सोते वक्त एक हफ्ते तक नियमित रूप से सेवन करने से कब्ज दूर होती है और भूख बढ़ती है।
३) इन दिनों कुछ देशों में जामुन के रस से विशेष औषधियों का निर्माण किया जा रहा है, जिनके माध्यम से सिर के सफेद बाल आना बंद हो जाएँगे।
४) गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर ‘माउथ वॉश’ की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी।
५) विषैले जंतुओं के काटने पर जामुन की पत्तियों का रस पिलाना चाहिए। काटे गए स्थान पर इसकी ताजी पत्तियों का पुल्टिस बाँधने से घाव स्वच्छ होकर ठीक होने लगता है क्योंकि, जामुन के चिकने पत्तों में नमी सोखने की अद्भुत क्षमता होती है।
६) जामुन यकृत को शक्ति प्रदान करता है और मूत्राशय में आई असामान्यता को सामान्य बनाने में सहायक होता है।
७) जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल का रस बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।
८) जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक ढक्कनदार साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।
९) जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है।
१०) गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है। जामुन स्वाद में खट्टा-मीठा होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। इसमें उत्तम किस्म का शीघ्र अवशोषित होकर रक्त निर्माण में भाग लेने वाला तांबा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह त्वचा का रंग बनाने वाली रंजक द्रव्य मेलानिन कोशिका को सक्रिय करता है, अतः यह रक्तहीनता तथा ल्यूकोडर्मा की उत्तम औषधि है। इतना ध्यान रहे कि अधिक मात्रा में जामुन खाने से शरीर में जकड़न एवं बुखार होने की सम्भावना भी रहती है। इसे कभी खाली पेट नहीं खाना चाहिए और न ही इसके खाने के बाद दूध पीना चाहिए।
संतरा (नारंगी) के गुण:नारंगी रंग का दिखने वाला संतरा ठंडा, तन और मन को प्रसन्नता देने वाला फल है। यह जितना खाने में स्वादिष्ट होता है उतना ही स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है। एक व्यक्ति को जितनी विटामिन ‘सी’ की आवश्यकता होती है, वह एक संतरें को प्रतिदिन खाते रहने से पूरी हो जाती है। संतरे के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है, चुस्ती-फुर्ती बढ़ती है, त्वचा में निखार आता है तथा सौंदर्य में वृद्धि होती है। प्रस्तुत है इसके कुछ प्रयोग-
1. संतरे का सेवन जहाँ जुकाम में राहत पहुँचाता है, वहीं सूखी खाँसी में भी फायदा करता है। यह कफ को पतला करके बाहर निकालता है।
2. संतरे में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी, लोहा और पोटेशियम काफी होता है। संतरे की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें विद्यमान फ्रुक्टोज, डेक्स्ट्रोज, खनिज एवं विटामिन, शरीर में पहुंचते ही ऊर्जा देना प्रारंभ कर देते हैं।
3. संतरे का एक गिलास रस तन-मन को शीतलता प्रदान कर थकान एवं तनाव दूर करता है, हृदय तथा मस्तिष्क को नई शक्ति व ताजगी से भर देता है।
4. पेचिश की शिकायत होने पर संतरे के रस में बकरी का दूध मिलाकर लेने से काफी फायदा मिलता है।
5. संतरे का नियमित सेवन करने से बवासीर की बीमारी में लाभ मिलता है। रक्तस्राव को रोकने की इसमें अद्भुत क्षमता है।
6. तेज बुखार में संतरे के रस का सेवन करने से तापमान कम हो जाता है। इसमें उपस्थित साइट्रिक अम्ल मूत्र रोगों और गुर्दा रोगों को दूर करता है।
7. दिल के मरीज को संतरे का रस शहद मिलाकर देने से आश्चर्यजनक लाभ मिलता है।
8. संतरे के सेवन से दाँतों और मसूड़ों के रोग भी दूर होते हैं।
9. छोटे बच्चों के लिए तो संतरे का रस अमृततुल्य है। उन्हें स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट बनाने के लिए दूध में चौथाई भाग मीठे संतरे का रस मिलाकर पिलाने से यह एक आदर्श टॉनिक का काम करता है।
10. जब बच्चों के दाँत निकलते हैं, तब उन्हें उल्टी होती है और हरे-पीले दस्त लगते हैं। उस समय संतरे का रस देने से उनकी बेचैनी दूर होती है तथा पाचन शक्ति भी बढ़ जाती है।
11. पेट में गैस, अपच, जोड़ों का दर्द, उच्च रक्तचाप, गठिया, बेरी-बेरी रोग में भी संतरे का सेवन बहुत कुछ लाभकारी होता है।
12. गर्भवती महिलाओं तथा यकृत रोग से ग्रसित महिलाओं के लिए संतरे का रस बहुत लाभकारी होता है। इसके सेवन से जहाँ प्रसव के समय होने वाली परेशानियों से मुक्ति मिलती है, वहीं प्रसव पीड़ा भी कम होती है। बच्चा स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट पैदा होता है|
13. संतरे के सूखे छिलकों का महीन चूर्ण गुलाब जल या कच्चे दूध में मिलाकर पीसकर आधे घंटे तक लेप लगाने से कुछ ही दिनों में चेहरा साफ, सुंदर और कांतिमान हो जाता है। कील मुँहासे-झाइयों व साँवलापन दूर होता है।
14. संतरे के ताजे फूल को पीसकर उसका रस सिर में लगाने से बालों की चमक बढ़ती है। बाल जल्दी बढ़ते हैं और उसका कालापन बढ़ता है।
आम के गुण: आम सिर्फ स्वाद में ही नम्बर वन नहीं है, यह अनेक गुणों का भी खजाना है। आइये जानते हैं कि आम किन-किन घातक बीमारियों में मिटाने में हमारी मदद कर सकता है|
1. शहद के साथ पके आम के सेवन से क्षयरोग एवं प्लीहा के रोगों में लाभ होता है तथा वायु और कफ दोष दूर होते हैं।
2. यूनानी चिकित्सकों के अनुसार, पका आम आलस्य को दूर करता है तथा मूत्र संबंधी रोगों का सफाया करता है।
3. प्राकृतिक रूप से पका हुआ आम क्षयरोग यानी टीबी को मिटाता है, गुर्दे एवं बस्ति (मूत्राशय) खोई हुई शक्तियों को लौटाता है।
4. जिन लोगों को शुक्रप्रमेह शारीरिक विकारों और वातादि यानी वायु संबंधी दोषों के कारण संतानोत्पत्ति न होती हो उनके लिए पका आम किसी वरदान से कम नहीं है। मतलब कि संतान सुख से वंचित दंपत्ती के लिये आम बेहद लाभदायक होता है।
5. प्राकृतिक रूप से पके हुए ताजे आम के सेवन से पुरूषों में शुक्राणुओं की कमी, नपुंसकता, दिमागी कमजोरी आदि रोग दूर होते हैं।
६) कच्चे और पके दोनों तरह के आम कई तरह की किस्मों में मिलते हैं । कच्चे आम में गैलिक एसिड के कारण खटास होती है। आम के पकने के साथ उसका रंग भी सफेद से पीला हो जाता है। यही पीले रंग का कैरोटीन हमारे शरीर में जाकर विटामिन ‘ए’ में परिवर्तित हो जाता है। इसमें विटामिन ‘सी’ भी काफी होता है।कच्चा आम-कच्चे आम में बहुत से गुण पाए जाते हैं। कच्चे आम को आग में भूनकर पानी में मसलकर आम का पन्ना बनाते हैं। फिर इसमे भुना हुआ जीरा, सेंधानमक और कालीमिर्च डालते हैं। इस पन्ना को पीने से लू लगने के रोग में आराम आता है। आम के पन्ना को शरीर पर मलने से ठण्डक मिलती है।
७) पका आम मीठे और पके आम शरीर में वीर्य को बढ़ाने वाले, ताकत पैदा करने वाले, त्वचा को निखारने वाले, ठंडे और पित्त को सन्तुलित रखने वाले होते हैं।
८) आमरस-आम का रस भारी- ताकत बढ़ाने वाला, वात को हरने वाला, दस्त लाने वाला, प्यास को कम करने वाला और शरीर में कफ की मात्रा को बढ़ाने वाला होता है। अगर आम के रस को निकालकर उसमे बराबर मात्रा में दूध और सफेद बूरा या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर कपड़े में छानकर इस्तेमाल किया जाए तो ये बहुत ही स्वादिष्ट आम का रस बन जाता है।
९) दूध और मिश्री मिला हुआ आम का रस शरीर के अन्दर से पित्त को समाप्त करता है। ये पुष्टिदायक, रुचिकारक और वीर्य तथा बल को बढ़ाने वाला होता है। ये आम का रस स्वाद में मीठा और तासीर में ठंडा होता है। आम का रस यक्ष्मा (टी.बी) के रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी है। इसको पीने से बुखार तथा खांसी जैसे रोग दूर हो जाते हैं। यक्ष्मा (टी.बी ) के रोगी की सांस जब चढ़ने लगती है, बलगम में खून आता हो तो ऐसे समय में रोगी को आम का रस देने से बहुत लाभ होता है।
कब न खाएँ :भूखे पेट आम न खाएँ। इसके अधिक सेवन से रक्त विकार, कब्ज और पेट में गैस बनती है। कच्चा आम अधिक खाने से गला दर्द, अपच, पेट दर्द हो सकता है। कच्चा आम खाने के तुरंत बाद पानी न पिएँ। मधुमेह के रोगी आम से परहेज करें। खाने से पहले आम को ठंडे पानी या फ्रिज में रखें, इससे इसकी गर्मी निकल जाएगी।
करेला के गुण:डायबिटीज’ करेला मधुमेह के रोगियों के लिए ‘अमृत’ तुल्य है। 100 मिली. के रस में इतना ही पानी मिलाकर दिन में तीन बार लेने से लाभ होता है और प्रात: चार किलोमीटर टहलना चाहिए तथा मिठाई खाने से परहेज रखना चाहिए। करेला मधुमेह के अलावा अन्य शारीरिक तकलीफों में भी लाभदायक है। जैसे-
कब्ज : नित्य करेला सेवन करने से कब्ज दूर होता है। यह एक अनुपम सब्जी है और इसमें ज्यादा तेल-मसाले नहीं डालने चाहिए।पीलिया : ताजा करेले का रस सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
दमा : दमा के मरीज भी करेले का रस सुबह खाली पेट लेकर राहत पा सकते हैं। सब्जी भी ज्यादा खानी चाहिए।
पथरी: पथरी गुर्दे की हो या मूत्राशय की, इसे तोड़कर बाहर निकालने की क्षमता करेला रखता है। करेले का रस दिन में दो बार और दोनों समय भोजन में करेले की सब्जी खानी चाहिए।
खूनी बवासीर : मस्से फटने से रक्तस्राव होता है जिसे खूनी बवासीर कहा जाता है। रोगी नित्य दिन में दो समय करेले के रस में दो चम्मच शक्कर मिलाकर पिये तो लाभ होगा।
पाचन शक्ति : यदि पाचन शक्ति कमजोर हो तो किसी भी प्रकार करेले का नित्य सेवन करने से पाचन शक्ति मजबूत होती है। करेला स्वयं भी शीघ्र पचता है।खून की शुध्दि : करेला खून की शुध्दि करने में पूरी तरह सक्षम है। यदि त्वचा-रोग हो तो भी रक्त-शुध्दि हेतु करेले का रस कुछ दिनों तक आधा-आधा कप पीना लाभदायक है। इस प्रकार कड़ुवा करेला अनेकों रोगों में औषधि रूप में काम आ सकता है बशर्ते उसे उसी रूप में लिया जाये- रस या सब्जी बनाकर।
लौकी के गुण:सब्जी के रुप में खाए जाने वाली लौकी हमारे शरीर के कई रोगों को दूर करने में सहायक होती है। यह बेल पर पैदा होती है और कुछ ही समय में काफी बड़ी हो जाती है। वास्तव में यह एक औषधि है और इसका उपयोग हजारों रोगियों पर सलाद के रूप में अथवा रस निकालकर या सब्जी के रुप में एक लंबे समय से किया जाता रहा है। लौकी को कच्चा भी खाया जाता है, यह पेट साफ करने में भी बड़ा लाभदायक साबित होती है और शरीर को स्वस्य और शुद्ध भी बनाती है। लंबी तथा गोल दोनों प्रकार की लौकी वीर्य वर्धक , पित्त तथा कफनाशक और धातु को पुष्ट करने वाली होती है। आइए इसके औषधीय गुणों पर एक नज़र डालते हैं-
1. हैजा होने पर 25 एम.एल. लौकी के रस में आधा नींबू का रस मिलाकर धीरे-धीरे पिएं। इससे मूत्र बहुत आता है।
2.खांसी, टीबी, सीने में जलन आदि में भी लौकी बहुत उपयोगी होती है।
3.हृदय रोग में, विशेषकर भोजन के पश्चात एक कप लौकी के रस में थोडी सी काली मिर्च और पुदीना डालकर पीने से हृदय रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
4.लौकी में श्रेष्ठ किस्म का पोटेशियम प्रचुर मात्रा में मिलता है, जिसकी वजह से यह गुर्दे के रोगों में बहुत उपयोगी है और इससे पेशाब खुलकर आता है।
5.लौकी श्लेषमा रहित आहार है। इसमें खनिज लवण अच्छी मात्रा में मिलते है।
6.लौकी के बीज का तेल कोलेस्ट्रॉल को कम करता है तथा हृदय को शक्ति देता है। यह रक्त की नाडि़यों को भी तंदुरस्त बनाता है। लौकी का उपयोग आंतों की कमजोरी, कब्ज, पीलिया, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, < मधुमेह शरीर में जलन या मानसिक उत्तेजना आदि में बहुत उपयोगी है।टमाटर स्वादिष्ट होने के साथ पाचक भी होता है। पेट के रोगों में इसका प्रयोग औषधि की तरह किया जा सकता है। जी मिचलाना, डकारें आना, पेट फूलना, मुँह के छाले, मसूढ़ों के दर्द में टमाटर का सूप अदरक और काला नमक डालकर लिया जाए तो तुरंत फायदा होता है।टमाटर के सूप से शरीर में स्फूर्ति आती है। पेट भी हल्का रहता है। सर्दियों में गर्मागर्म सूप जुकाम इत्यादि से बचाता है। अतिसार, अपेंडिसाइटिस और शरीर की स्थूलता में टमाटर का सेवन लाभदायक है। रक्ताल्पता में इनका निरंतर प्रयोग फायदा देता है। टमाटर की खूबी है कि इसके विटामिन गर्म करने से भी नष्ट नहीं होते। बेरी-बेरी, गठिया तथा एक्जिमा में इसका सेवन आराम देता है। ज्वर के बाद की कमजोरी दूर करने में इससे अच्छा कोई विकल्प नहीं। मधुमेह के रोग में यह सर्वश्रेष्ठ पथ्य है।
टमाटर में विटामिन ‘सी’ होता है, जो कि इम्युनिटी के स्तर को बढ़ाता है जिससे साधारण सर्दी और कफ की शिकायत नहीं होती। गॉल स्टोन और लिवर कन्जेशन में भी टमाटर का सेवन कारगर है। हम कह सकते हैं कि टमाटर पोषक तत्वों का खजाना है, क्योंकि इसमें पाए जाने वाला विटामिन ‘ए’ आँखों और त्वचा के लिए व पोटेशियम मांसपेशियों में होने वाली ऐंठन में भी फायदा पहुँचाता है। टमाटर में जो लाल रंग का तत्व होता,उसे लायकोपिन कहते हैं,यह तत्व शरीर को विजातीय पदार्थों(टाक्सीन्स) से मुक्त करने में सहायक है।लायकोपिन शरीर को फ़्री रेडिकल्स से मुक्त करने के मामले में बीटा केरोटीन(एन्टी ओक्सीडेन्ट) से भी आगे है। अनुसंधान में पाया गया है कि टमाटर के नियमित सेवन से प्रोस्टेट केंसर से बचाव होता है।इसराईल के वैग्यानिकों के अनुसार टमाटर फ़ेफ़डे,बडी आंत और गर्भाषय के केंसर से बचाव करता है।और सबसे सुखप्रद तथ्य ये कि टमाटर सेवन करने से व्यक्ति लंबे समय तक बुढापे की चपेट मे नहीं आता है।
पपीता के गुण:पपीता न केवल एक स्वादिष्ट फ़ल है बल्कि इसमे उपस्थित औषधीय गुणों का विशेष महत्व है।पपीते में उच्च मात्रा में पोटेशियम तत्व पाया जाता है और इसके गूदे में भरपूर विटामिन” ए ” मिलता है। पपीता के बीज और पत्तियां अपने कीटाणुनाशक गुणों के चलते आंतों में निवास करने वाले किटाणुओं को मारने के लिये प्रयोग किये जा सकते हैं।इसके नियमित उपयोग से कब्ज रोग का ईलाज हो जाता है।इसमें पाये जाने वाले पापैन(प्रोटीन) का हमारे शरीर के पाचन संस्थान को चुस्त-दुरस्त रखने का उत्तरदायित्व है। पपीते का जूस नियमित पीने से बडी आंत की सफ़ाई होती है और उसमें स्थित संक्रमण,श्लेष्मा और पीप का निष्कासन होने लगता है। ऐसे घाव जो अन्य चिकित्सा से ठीक न हो रहे हों पपीता का छिलका उन घावों पर कुछ रोज लगाकर अच्छे परिणाम की उम्मीद रखना चाहिये। पपीता में सूजन विरोधी और केंसर से बचाने के गुण मौजूद हैं।इस सूजन विनाशक गुण के चलते पपीता उन लोगों के लिये फ़ायदेमंद है जो शौथ,संधिवात ,गठिया रोग से पीडित है।
पपीता उदर रोगों में लाभकारी है। आमाषय को स्वच्छ करता है। एक ताजा अध्ययन का निष्कर्ष है कि ३-४ रोज सिर्फ़ पपीता खाने से आमाषय और आंतों को आशातीत लाभ मिलता है।
कच्चा पपीता खाने से मासिक धर्म के विकार नष्ट होते हैं। मासिक धर्म खुलकर और नियमित आने लगता है। पपीता उन लोगों के लिये अमृत समान है जो सर्दी,खासी,फ़्लु से बार-बार परेशान रहते हैं। पपीता का उपयोग करने से हमारे शरीर का इम्युन सिस्टम मजबूत होता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफ़ा होता है।गर्भवतियों में सुबह की मिचली नियंत्रित करने के लिये पपीता का सेवन हितकारी है। धमनियों के कठोर होने के दोष को निवारण करने में पपीता उपयोगी है।शूगर रोगियों की हृदय की बीमारियों में पपीता अत्यंत हितकारी है।पपीता का रेशा खराब कोलेस्टरोल(एल्डीएल) का स्तर घटाता है और इस प्रकार हृदय की सुरक्षा करता है।इसके नियमित सेवन से अंगों और ग्रंथियों में केंसर की रोकथाम और बचाव होता है।
कद्दू(काशीफ़ल) के गुण: कद्दू में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है। पीले और संतरी कद्दू में केरोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो शरीर में फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है। कद्दू ठंडक पहुंचाने वाला होता है। इसे डंठल की ओर से काटकर तलवों पर रगड़ने से शरीर की गर्मी खत्म होती है। कद्दू लंबे समय के बुखार में भी असरकारी होता है। इससे बदन की हरारत या उसका आभास दूर होता है। कद्दू के बीज भी बहुत गुणकारी होते हैं। कद्दू व इसके बीज विटामिन सी और ई, आयरन, कैलशियम मैग्नीशियम, फॉसफोरस, पोटैशियम, जिंक, प्रोटीन और फाइबर आदि के भी अच्छे स्रोत होते हैं। यह बलवर्धक, रक्त एवं पेट साफ करता है, पित्त व वायु विकार दूर करता है और मस्तिष्क के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। प्रयोगों में पाया गया है कि कद्दू के छिलके में भी एंटीबैक्टीरिया तत्व होता है जो संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं से रक्षा करता है। कद्दू का रस भी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह मूत्रवर्धक होता है और पेट संबंधी गड़बड़ियों में भी लाभकारी रहताहै। यह खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में सहायक होता है और अग्नयाशय को भी सक्रिय करता है। इसी वजह से चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को कद्दू के सेवन की सलाह देते हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि बढने के रोग में ३० ग्राम कद्दू के बीज(छिलका रहित) तवे पर सेक लें और खाएं। ऐसा दिन में तीन बार करें। इन बीजों में फ़ायटोस्टरोल तत्व की उपस्थिति से प्रोस्टेट ग्रंथि सिकुडकर मूत्र बिना रुक्कावट खुलकर आने लगता है।